tag:blogger.com,1999:blog-35087641331813493642024-03-13T23:36:08.082-07:00सुनहरे सपनेनीरज शर्माhttp://www.blogger.com/profile/02856956576255042363noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-3508764133181349364.post-56920025751498208462007-07-17T00:36:00.000-07:002007-07-17T09:00:50.180-07:00मैं तो राष्ट्रपति भवन की सिढियाँ जरूर चढ जाउँगी।<div align="justify"><span style="font-size:130%;">जनाब ! आप क्या सोचते हैं, सिर्फ पुरूषों को ही राष्ट्रपति भवन की सिढियाँ चढने का अधिकार है।, महिलाओं को नहीं । मैं भी राष्ट्रपति भवन की सिढियाँ चढूँगी। ये बात अलग है कि जिस राजपूती मर्यादा की दुहाई मैं देती हूँ, उसी राजपूती शान के सिरमौर महाराणा प्रताप की जयन्ती के अवसर पर मैं उदयपुर की मोती मगरी की सिढियॉं नहीं चढ पाई और उन्हें 'दूर' से ही सलाम कर दिया। पर आपको ये मानना ही होगा कि देश का बंटाधार (माफ करियेगा जबान फिसल गई) बेडापार तभी होगा जब राष्ट्रपति भवन से देश के न्यायालयों को अपरोक्ष संकेत दे दूँगी कि बस अब बस भी करो। कम से कम राष्ट्र *पति*, (महामहिम, महामहिमा या महामुहिमा या पता नहीं इस देश के जले भुने विपक्षी नेता मुझे किस नाम से पुकारे, वैसे राज की बात ये है कि मैं खुद कन्फ्यूज्ड हूँ। हॉं भाई कन्फ्यूज्ड हूँ, ही कहा है मैंने क्या करूँ उमर का असर है, होता ही है, मान लिया करो, छोटी छोटी बातों पर ध्यान मत दिया करो।) को तो अदालतों के चक्कर से बख्शों, आखिर ये पति हैं।<br />देखो एक बात और बताती हूँ, मैंने सपने मैं भी नहीं सोचा था कि मुझे राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना दिया जायेगा। सच कहूँ तो मैं तो राष्ट्रपति शब्द से शरमा रही हूँ, मैं तो राजपूती खानदान और उँचे कुल की बहु हूँ । पति शब्द थोडा कम समझ में आ रहा है। खैर दूसरी बात ये की मूझे देश्ा की राष्ट्रीय पुरूषवादी राजनीति करने से कभी मतलब नहीं रहा। तभी तो मैंने *उनकी* कसम खाई है। कि उनके खिलाफ विदेशी मूल का मुद्दा कभी उठने नहीं दूँगी। उन केयरटेकर ने जो राजगादी के लिये जो भूमिका तैयार की है, उस पर अपनी मोहर लगाकर उनका राजतिलक कर दूँगी। अरे चुपचाप सुन एवं समझ लो, मैं यह कोई नया काम या नई परम्परा नहीं डाल रही हूँ, ज्ञानी जी भी ऐसा कर गये हैं। मैं तो बस उसी परम्परा का निर्वहन करूँगी। आप मानों या ना मानों मुझे उनका आशीर्वाद मिल गया है। मुझे आपसे ज्यादा उनकी फिकर है, मैं हर हाल में राष्ट्रपति भवन की सिढियॉं चढूँगीफ मैंने आपसे पहले ही बाय बाय कह दिया है, आप तो अपनी खीज निकालोगे ही। निकालो निकालो, निकालते रहो। मुझे क्या, हो सके तो उन लोगों को भी पार्टी से निकालो जो मुझ पर आरोप लगा रहें हैं।<br />ठीक है मेरे पति पर मुकदमा चल रहा है, ये भी ठीक है कि मुझ पर दूसरे कई आरोप लग रहें हैं पर क्या मैं कभी जेल गई क्या मुझ पर कभी कोर्ट में कोई आरोप सिद्ध हुआ, नहीं ना। तो फिर क्यों चिल्ल पौं मचा रखी है।<br /><br />मुझे तो उस बुढे शेर का भी आशीर्वाद मिल गया है। मैं तो जाउँगी, जाउँगी और जाउँगी। राष्ट्रपति बनूँगी। फिर देखना देश का क्या (बे) हाल करती हूँ। फतवे भी जारी कर सकती हूँ, हॉं पता है नहीं कर सकती पर करवा तो सकती हूँख् ना। भाई मेरी मदद के लिये वो केयरटेकर हैं ना।<br /><br />कभी घूँघट प्रथा पर, तो कभी सती प्रथा पर भी कर सकती हूँ। तो कभी कोऑपरेटिव में भाई भतीजावाद फैलाने और ऋणों को मुफ्त बँटवाने के लिए भी। मुझे लडाई झगडों से सक्ष्त एलर्जी है। मैं मिसाईलों में विश्वास नहीं करती। मुझे विश्वास है उनमें जिन्होंने मुझमें विश्वास जताया है।<br /></span></div><div align="justify"><span style="font-size:130%;">"वादा निभाउँगी............... राष्ट्रपति भवन जाउँगी"<br /><br />भाई आरोप ही तो हैं। आरोप लगाते रहो । जॉंच होगी, और होती रहेगी, होती रहेगी, होती रहेगी। आडवाणीजी पर नहीं लगे हैं क्या, अब मैं उनका नाम नहीं ले सकती, वरना उन पर भी तो आरोप लगे हुए हैं, उनका कभी कुछ हुआ है क्या। फिर भी देखों वो आराम से परदे के पीछे से राजमाता बन कर राज चला रही है ना ओर कैसे हम सब उनका सम्मान करते हैं। आप क्यों नहीं कर सकते। अटलजी का ही करके देख लो। फिलहाल तो उनका करों जिन्हें आपने निर्दलीय खडा किया हुआ है। और कहो कि रोक सको तो रोक लो मुझे या फिर अपने शुभचिन्तकों को जो सिर्फ आरोप लगाना जानते हैं पर कोर्ट में सिद्ध नहीं करा पाते, याचिका दायर करने पर मात खा जाते हैं।<br />चलो बाय बाय। जीत की पार्टी के वक्त इंडिया गेट से राष्ट्रपति भवन की और ताकना। और मुँह लपलपाना कि काश हमे भी पार्टी में जाने का मौका मिलता भॅरोसिंह जी बाबोसा होते तो।</span></div>नीरज शर्माhttp://www.blogger.com/profile/02856956576255042363noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-3508764133181349364.post-14669624024564509872007-07-12T23:02:00.000-07:002007-07-12T23:26:41.033-07:00भई मुझसे तो धूल-धूप-गर्मी में लोकसभा चुनाव नहीं लडा जाता।<div align="justify"><span style="font-size:130%;">अचानक नींद खुली तो अभी अभी देखे सपने का दृश्य सामने आ गया। वो मैडम के पावाधोक में लगे थे। रास्ते में बतियाते जा रहे थे, चलों अपनी चवन्नी तो चल गई, फिर से राज्यसभा में निर्वाचन हो गया है। अब भले कोई भी उछल कूद करे, सीट से कोई हिला नहीं सकता ना ही कोई कह सकता है कि सदन का सदस्य नहीं हूँ।<br /><br />भई मैं (ईमानदार) अर्थशास्त्री हूँ, जानता हूँ आज के लोकतंत्र में लोकसभा का चुनाव लडना कितना खर्चीला है। मैं अपनी कुल जमा पूंजी लेकर अगर चुनाव लडने निकलूं, और भगवान कहीं मेहरबान न रहे, तो कैसे अपना बुढापा काटूंगा। तुम ही बताओ। इसिलिये मैडम की चमचागिरी करके राज्यसभा का टिकट ले लेता हूँ ताकि बिना हिल हुज्जत के आसानी से वीआईपी सुविधाऍँ मिल जाएं।<br /><br />मुझे पता है, मैं धूप-धूल-गर्मी में भाषण देकर जनता को बेवकूफ नहीं बना सकता हूँ। मैं तो एसी केबन में बैठता रहा हूँ। कहॉं भूखों, अधनंगों के हाथ जोडता फिरूं, भई मेरे वोटर भी तो मेरे ही स्तर के होने चाहिये ना, करोडपति तो होने ही चाहिये। मैं दुनिया को अर्थशास्त्र सिखाता हूँ, मुझे क्या पडी है जो आम जनता का अर्थशास्त्र जानने के लिए द्वार-द्वार भटकूं। मैं अब इतनी फिकर करने लगा कि इस छोटी सी ढाणी में पीने का पानी नहीं है, फ्लोराईड युक्त पानी पॉंच किलोमीटर दूर से पैदल चल कर लाना होता है और वह भी उस एकमात्र हैण्डपम्प को 20 मिनट तक चलाने पर आता है, ढाणियों में महीनों तक कोई एएनएम नहीं जाती है, सडक ही नहीं है। अब इन छोटी-छोटी बातों का मैं ध्यान रखूँगा, तो हो गया मैं अर्थशास्त्र में पास। मेरे लाईट, नल के बिल तो मेरे मुलाजिम भर देते हैं, तो क्यों आम जनता की, उनके लाईन में लगने की पीडा भोगने का अनुभव करूँ। क्यों मैं उनकी व्यथा जानु, क्यों मैं यह जानु की राशन की दुकान पर गेंहूँ कम क्यों तौला जाता है। क्यों मैं यह जानु कि अधिकारी, कर्मचारी कार्यालयों में नहीं टिकते हैं। क्यो मैं यह जानने की काशिश करूँ कि रेल्वे लाईनों को ब्रॉडगेज में परिवर्तित करने के काम में भी क्षेत्रवाद चलता है। क्यों डॉक्टर घर पर ही मरीज देखने की जिद करते हैं, गाँवों में नहीं जाते, मुझे क्या, मेरे लिए तो दुनिया के श्रेष्ठ डॉक्टर उपलब्ध रहते हैं ना पूरे चौबीसों घण्टे। क्यों शिक्षक कक्षाओं में नहीं जाते हैं, क्यों मैं जानूं कि मासूमों को खिलाने को भेजा, मीड डे मील बीच में ही सरकारी कारिन्दे और ठेकेदार डकार जाते हैं, क्यों में यह जानने की कोशिश करूं कि जिस वित्त मंत्रालय का प्रभार मैं बरसों पहले संभाल चुका हूँ, उसमें आज भी रिफंड, सर्वे, सर्च और स्क्रूटनी के नाम पर सुविधा शुल्क की मॉंग की जाती है। भाई मैं जब वोट मॉंगने जाउँगा तो वोटर मुझमें कई सारी खोट निकालेंगे तो मैं क्या जवाब दूँगा। सरकार की कमान मेरे हाथ में थोडे ही है, जो मैं महँगाई, गरीबी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, कन्या भ्रूण हत्या, अफजल के मुद्दे पर सबको सफाई दे सकूँगा। मैं तो मैडम का सच्चा सेवक हूँ, दिल से उनकी, उनके परिवार की सेवा में लगा हूँ। उनकी पुश्तैनी जागीर को पोषित करने में सहयोग कर रहा हूँ और उनको बस एक दिन उनकी जागीर सौंप कर दूर किसी एकांत में प्रभु नाम का सुमिरन करूँगा।<br /><br />भई बात को समझने की कोशिश करो मैं इतने झंझट वाले काम नहीं कर सकता। मैंने तो कह दिया है ना, आपको कि, आपके तारनहार बाबा आपको संभालेंगे। वही आपके अगले प्रधानमंत्री होंगे, मैं तो बस केयरटेकर की भूमिका निभा रहा हूँ। ये बात अलग है कि बाबा, मम्मी और बेबी यू0पी0 चुनाव से मायूस हैं और मातम मनाने की स्थिति में भी नहीं है। राष्ट्रपति चुनाव जो सिर पर है। कहीं वो टीचर मुझ अर्थशास्त्री पर भारी पड गई तो मेरी तो भद पीट जायेगी ना। </span></div>नीरज शर्माhttp://www.blogger.com/profile/02856956576255042363noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-3508764133181349364.post-47316063629109306132007-07-08T02:38:00.002-07:002007-07-08T08:04:40.599-07:00सात रेसकोर्स जायेंगे मन्दिर वहीं बनायेंगे। -- हास्य-व्यंग्य<div align="justify"><span style="font-size:130%;">कमाल है भाई अब क्या सपनों पर भी प्रतिबन्ध लगाने जा रहे हो। इस पर भी सेंसरशिप चलाओगे क्या। हॉं! तो ! क्यों नहीं लगवा सकते क्या। अरे ठीक है, ठीक है। वो तो बडी बिन्दिया लगाने वाली बहनजी नहीं है वरना उन पर तो हमारे प्रेमी लखनउ वाले कविराजजी का वरदहस्त था। वो किसी पर भी सेंसरशिप लगा सकती थी। बोलने पर भी। देखा नहीं देश की राजमाता की राजनीति पर प्रतिबन्ध लगाने बेल्लारी गई और खिसियाकर वापस आई। </span></div><div align="justify"><span style="font-size:130%;"></span></div><div align="justify"><span style="font-size:130%;">यूपी चुनाव में उन राम रथ यात्रा निकालने वालों पर कैसे उन गरजते, सिंह सा0 ने सेंसरशिप लगाई कि खुद अब मुँह छिपाते फिर रहे हैं। यात्रा वाले तो इतनी यात्रा निकाल चुके हैं कि जनता ने आजिज आकर उनकी पार्टी की यात्रा ऐसी निकाली कि बोली ही नहीं निकल रही है।</span></div><div align="justify"><span style="font-size:130%;"></span></div><div align="justify"><span style="font-size:130%;">देखा नहीं हॉंक रहे थे, कि बहुमत लायेंगे और मन्दिर वहीं बनायेंगे। बन गया ना मन्दिर और किसी का बने ना बने उन कविराजजी का जरूर बनवा देंगे ओर कहेंगे अब विश्राम करो बहुत हो गई राजनीति हमें भी करने दो। हमने जो 7 रेसकोर्स में जाने का सपना देख रखा है उसका क्या होगा। अब ठीक है, 10 जनपथ पर राजमाता का पुश्तैनी कब्जा है तो है, कभी ना कभी जरूर हटवा देंगे। पर जब तक वो इसमें है, तभी तक अपनी खैर मनालो वरना जिस दिन जनता ने सोच लिया। सूचना के अधिकार में सब पुराना हिसाब किताब मॉंग कर चुकारा कर देगी।</span></div><div align="justify"><span style="font-size:130%;"></span></div><div align="justify"><span style="font-size:130%;">वो तो हमने पहले ही राजस्थानी को ठिकाने लगा कर महामहिम बनाने का पैंतरा चल दिया वरना वो तो अल्प बहुमत की सरकार को भी पॉंच वर्ष तक आसानी से चलाने वाले धुरन्धर राजनीतिज्ञ हैं और सब राजनीतिक दलों से मिलजुल कर रहते हैं। अपने उन दा की तरह नहीं है, जो भगवा के नाम से ही बिदकते हैं। भले ही वो भगवा देश के झण्डे में हो। उनका बस चले तो उसे भी लाल रंग का करवा देवें। पर बंगाल से बाहर उत्तर पश्चिम चलता नहीं है, इसलिये बेबस हैं।</span></div><div align="justify"><span style="font-size:130%;"></span></div><div align="justify"><span style="font-size:130%;">ना ही वो राजस्थानी, यूपी वाले नौसिखिया सिंह है जो अपने ही प्रदेश की लुटिया डुबती मजे से देखते रहें और प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी के ‘मनोनीत’ राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहें।</span></div><div align="justify"><span style="font-size:130%;"></span></div><div align="justify"><span style="font-size:130%;">भई ठीक है ये क्यों नहीं मानते कि इतने प्रदेशों में हमारी पार्टी की सरकारें हैं। आखिर वो भी तो हमारी मेहनत का ही नतीजा है ना। दूसरी पार्टी वालों को शासन ठीक से चलाना नहीं आया और जनता ने हमें मौका दिया ये क्या कम बात है। हमने ही तो कई सारे झूठे वादे कर जनता को बरगलाया था कि हम गरीबी मिटा देंगे। अब ठीक है यूपी वालों को वो हाथी वाली बरगलाने में कामयाब हो गई है। पर देखना एक ना एक दिन हम जरूर जंग जीतेंगे। हम हार नहीं मानेंगे। हार नहीं मानेंगे, रार नहीं ठानेंगे। तब तक चुप नहीं बैठेंगें जब तक 120 करोड जनता को राम के नाम से बरगालने में कामयाब नहीं हो जाते। आखिर केन्द्र में सत्ता नहीं मिलेगी तो राम को उनका ठिकाना कैसे मिल पायेगा। जब तक हमें 7 रेसकोर्स में ठिकाना नहीं मिल जाता, हम राम को ठिकाने पर नहीं लगायेंगे।</span></div><div align="justify"><span style="font-size:130%;"></span></div><div align="justify"><span style="font-size:130%;">नीरज कुमार शर्मा, लाल बाजार, नाथद्वारा (राज0)</span></div><div align="justify"><span style="font-size:130%;">ईमेल </span><a href="mailto:shrinathjee@gmail.com"><span style="font-size:130%;">shrinathjee@gmail.com</span></a><span style="font-size:130%;"> </span></div>नीरज शर्माhttp://www.blogger.com/profile/02856956576255042363noreply@blogger.com2