अचानक नींद खुली तो अभी अभी देखे सपने का दृश्य सामने आ गया। वो मैडम के पावाधोक में लगे थे। रास्ते में बतियाते जा रहे थे, चलों अपनी चवन्नी तो चल गई, फिर से राज्यसभा में निर्वाचन हो गया है। अब भले कोई भी उछल कूद करे, सीट से कोई हिला नहीं सकता ना ही कोई कह सकता है कि सदन का सदस्य नहीं हूँ।
भई मैं (ईमानदार) अर्थशास्त्री हूँ, जानता हूँ आज के लोकतंत्र में लोकसभा का चुनाव लडना कितना खर्चीला है। मैं अपनी कुल जमा पूंजी लेकर अगर चुनाव लडने निकलूं, और भगवान कहीं मेहरबान न रहे, तो कैसे अपना बुढापा काटूंगा। तुम ही बताओ। इसिलिये मैडम की चमचागिरी करके राज्यसभा का टिकट ले लेता हूँ ताकि बिना हिल हुज्जत के आसानी से वीआईपी सुविधाऍँ मिल जाएं।
मुझे पता है, मैं धूप-धूल-गर्मी में भाषण देकर जनता को बेवकूफ नहीं बना सकता हूँ। मैं तो एसी केबन में बैठता रहा हूँ। कहॉं भूखों, अधनंगों के हाथ जोडता फिरूं, भई मेरे वोटर भी तो मेरे ही स्तर के होने चाहिये ना, करोडपति तो होने ही चाहिये। मैं दुनिया को अर्थशास्त्र सिखाता हूँ, मुझे क्या पडी है जो आम जनता का अर्थशास्त्र जानने के लिए द्वार-द्वार भटकूं। मैं अब इतनी फिकर करने लगा कि इस छोटी सी ढाणी में पीने का पानी नहीं है, फ्लोराईड युक्त पानी पॉंच किलोमीटर दूर से पैदल चल कर लाना होता है और वह भी उस एकमात्र हैण्डपम्प को 20 मिनट तक चलाने पर आता है, ढाणियों में महीनों तक कोई एएनएम नहीं जाती है, सडक ही नहीं है। अब इन छोटी-छोटी बातों का मैं ध्यान रखूँगा, तो हो गया मैं अर्थशास्त्र में पास। मेरे लाईट, नल के बिल तो मेरे मुलाजिम भर देते हैं, तो क्यों आम जनता की, उनके लाईन में लगने की पीडा भोगने का अनुभव करूँ। क्यों मैं उनकी व्यथा जानु, क्यों मैं यह जानु की राशन की दुकान पर गेंहूँ कम क्यों तौला जाता है। क्यों मैं यह जानु कि अधिकारी, कर्मचारी कार्यालयों में नहीं टिकते हैं। क्यो मैं यह जानने की काशिश करूँ कि रेल्वे लाईनों को ब्रॉडगेज में परिवर्तित करने के काम में भी क्षेत्रवाद चलता है। क्यों डॉक्टर घर पर ही मरीज देखने की जिद करते हैं, गाँवों में नहीं जाते, मुझे क्या, मेरे लिए तो दुनिया के श्रेष्ठ डॉक्टर उपलब्ध रहते हैं ना पूरे चौबीसों घण्टे। क्यों शिक्षक कक्षाओं में नहीं जाते हैं, क्यों मैं जानूं कि मासूमों को खिलाने को भेजा, मीड डे मील बीच में ही सरकारी कारिन्दे और ठेकेदार डकार जाते हैं, क्यों में यह जानने की कोशिश करूं कि जिस वित्त मंत्रालय का प्रभार मैं बरसों पहले संभाल चुका हूँ, उसमें आज भी रिफंड, सर्वे, सर्च और स्क्रूटनी के नाम पर सुविधा शुल्क की मॉंग की जाती है। भाई मैं जब वोट मॉंगने जाउँगा तो वोटर मुझमें कई सारी खोट निकालेंगे तो मैं क्या जवाब दूँगा। सरकार की कमान मेरे हाथ में थोडे ही है, जो मैं महँगाई, गरीबी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, कन्या भ्रूण हत्या, अफजल के मुद्दे पर सबको सफाई दे सकूँगा। मैं तो मैडम का सच्चा सेवक हूँ, दिल से उनकी, उनके परिवार की सेवा में लगा हूँ। उनकी पुश्तैनी जागीर को पोषित करने में सहयोग कर रहा हूँ और उनको बस एक दिन उनकी जागीर सौंप कर दूर किसी एकांत में प्रभु नाम का सुमिरन करूँगा।
भई बात को समझने की कोशिश करो मैं इतने झंझट वाले काम नहीं कर सकता। मैंने तो कह दिया है ना, आपको कि, आपके तारनहार बाबा आपको संभालेंगे। वही आपके अगले प्रधानमंत्री होंगे, मैं तो बस केयरटेकर की भूमिका निभा रहा हूँ। ये बात अलग है कि बाबा, मम्मी और बेबी यू0पी0 चुनाव से मायूस हैं और मातम मनाने की स्थिति में भी नहीं है। राष्ट्रपति चुनाव जो सिर पर है। कहीं वो टीचर मुझ अर्थशास्त्री पर भारी पड गई तो मेरी तो भद पीट जायेगी ना।
भई मैं (ईमानदार) अर्थशास्त्री हूँ, जानता हूँ आज के लोकतंत्र में लोकसभा का चुनाव लडना कितना खर्चीला है। मैं अपनी कुल जमा पूंजी लेकर अगर चुनाव लडने निकलूं, और भगवान कहीं मेहरबान न रहे, तो कैसे अपना बुढापा काटूंगा। तुम ही बताओ। इसिलिये मैडम की चमचागिरी करके राज्यसभा का टिकट ले लेता हूँ ताकि बिना हिल हुज्जत के आसानी से वीआईपी सुविधाऍँ मिल जाएं।
मुझे पता है, मैं धूप-धूल-गर्मी में भाषण देकर जनता को बेवकूफ नहीं बना सकता हूँ। मैं तो एसी केबन में बैठता रहा हूँ। कहॉं भूखों, अधनंगों के हाथ जोडता फिरूं, भई मेरे वोटर भी तो मेरे ही स्तर के होने चाहिये ना, करोडपति तो होने ही चाहिये। मैं दुनिया को अर्थशास्त्र सिखाता हूँ, मुझे क्या पडी है जो आम जनता का अर्थशास्त्र जानने के लिए द्वार-द्वार भटकूं। मैं अब इतनी फिकर करने लगा कि इस छोटी सी ढाणी में पीने का पानी नहीं है, फ्लोराईड युक्त पानी पॉंच किलोमीटर दूर से पैदल चल कर लाना होता है और वह भी उस एकमात्र हैण्डपम्प को 20 मिनट तक चलाने पर आता है, ढाणियों में महीनों तक कोई एएनएम नहीं जाती है, सडक ही नहीं है। अब इन छोटी-छोटी बातों का मैं ध्यान रखूँगा, तो हो गया मैं अर्थशास्त्र में पास। मेरे लाईट, नल के बिल तो मेरे मुलाजिम भर देते हैं, तो क्यों आम जनता की, उनके लाईन में लगने की पीडा भोगने का अनुभव करूँ। क्यों मैं उनकी व्यथा जानु, क्यों मैं यह जानु की राशन की दुकान पर गेंहूँ कम क्यों तौला जाता है। क्यों मैं यह जानु कि अधिकारी, कर्मचारी कार्यालयों में नहीं टिकते हैं। क्यो मैं यह जानने की काशिश करूँ कि रेल्वे लाईनों को ब्रॉडगेज में परिवर्तित करने के काम में भी क्षेत्रवाद चलता है। क्यों डॉक्टर घर पर ही मरीज देखने की जिद करते हैं, गाँवों में नहीं जाते, मुझे क्या, मेरे लिए तो दुनिया के श्रेष्ठ डॉक्टर उपलब्ध रहते हैं ना पूरे चौबीसों घण्टे। क्यों शिक्षक कक्षाओं में नहीं जाते हैं, क्यों मैं जानूं कि मासूमों को खिलाने को भेजा, मीड डे मील बीच में ही सरकारी कारिन्दे और ठेकेदार डकार जाते हैं, क्यों में यह जानने की कोशिश करूं कि जिस वित्त मंत्रालय का प्रभार मैं बरसों पहले संभाल चुका हूँ, उसमें आज भी रिफंड, सर्वे, सर्च और स्क्रूटनी के नाम पर सुविधा शुल्क की मॉंग की जाती है। भाई मैं जब वोट मॉंगने जाउँगा तो वोटर मुझमें कई सारी खोट निकालेंगे तो मैं क्या जवाब दूँगा। सरकार की कमान मेरे हाथ में थोडे ही है, जो मैं महँगाई, गरीबी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, कन्या भ्रूण हत्या, अफजल के मुद्दे पर सबको सफाई दे सकूँगा। मैं तो मैडम का सच्चा सेवक हूँ, दिल से उनकी, उनके परिवार की सेवा में लगा हूँ। उनकी पुश्तैनी जागीर को पोषित करने में सहयोग कर रहा हूँ और उनको बस एक दिन उनकी जागीर सौंप कर दूर किसी एकांत में प्रभु नाम का सुमिरन करूँगा।
भई बात को समझने की कोशिश करो मैं इतने झंझट वाले काम नहीं कर सकता। मैंने तो कह दिया है ना, आपको कि, आपके तारनहार बाबा आपको संभालेंगे। वही आपके अगले प्रधानमंत्री होंगे, मैं तो बस केयरटेकर की भूमिका निभा रहा हूँ। ये बात अलग है कि बाबा, मम्मी और बेबी यू0पी0 चुनाव से मायूस हैं और मातम मनाने की स्थिति में भी नहीं है। राष्ट्रपति चुनाव जो सिर पर है। कहीं वो टीचर मुझ अर्थशास्त्री पर भारी पड गई तो मेरी तो भद पीट जायेगी ना।
2 comments:
वाह नीरज जी बहुत अच्छा लिखा है आपने आज देश की अर्ध-व्यवस्था पर अच्छा प्रहार है ये...नेता भी कहा कुछ कर पाते है...वैसे भी नेता और अभिनेता एक जैसे ही तो होते है...कुर्सी मिली और ड्रामा खतम...फ़िर वही बेवकूफ़ जनता...तो आम आदमी क्या सोचता है बिल्कुल वही जो आपने लिखा है...वहुत अच्छा कटाक्ष किया है आपने...
अच्छा लिखा है मगर लिखते रहिये...रूकिये नही...हमे इन्तजार है आपके अगले लेखन का...
सुनीता(शानू)
how you write a comment in hindi i am unable to write hope u cn guide
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